हर वर्ष 1 मई को कामगार दिवस मनाया जाता है — एक ऐसा दिन जो श्रमिकों के अधिकारों, उनके योगदान और उनके संघर्षों को सम्मान देने के लिए समर्पित है। परंतु जब हम इस दिन को जश्न के रूप में मनाने की तैयारी करते हैं, तब हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि असली सम्मान केवल भाषणों और कार्यक्रमों से नहीं, बल्कि कामगारों की ज़िंदगी में सुधार लाकर ही संभव है।
वेस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड द्वारा बनाए गए कामगार वसाहतों की स्थिति आज खुद एक सवाल बनकर खड़ी है। रामनगर, गांधीनगर, सुभाष नगर, शास्त्री नगर, इंदिरा नगर, राजीव कॉलोनी जैसे क्षेत्र कामगारों के रहने के लिए बनाए गए थे, लेकिन आज वहां स्वच्छता और मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव देखने को मिल रहा है।
टूटी हुई नालियां, गंदे पानी के बीच से गुजरती पेयजल पाइपलाइन, तीन-चार दिन बाद आने वाला पानी, हर कोने में फैला कचरा और जर्जर हो चुकी बिल्डिंगें — ये सब इस बात का प्रमाण हैं कि कामगारों के जीवन स्तर को लेकर जितनी बातें की जाती हैं, हकीकत उससे कोसों दूर है।
सवाल यह भी उठता है कि कामगार नेताओं की भूमिका इस स्थिति में कितनी सक्रिय है? क्या उन्होंने कभी इन मुद्दों को गंभीरता से उठाया? क्या सिर्फ मंचों पर भाषण देना ही उनकी जिम्मेदारी है, या ज़मीनी सच्चाई को बदलना भी उनका कर्तव्य बनता है?
कामगार दिवस का असली मकसद तब पूरा होगा जब इन कॉलोनियों में रहने वाले श्रमिकों को भी वह गरिमा और सुविधाएं मिलें, जिनके वे असली हकदार हैं। सफाई, जल आपूर्ति, मरम्मत, स्वास्थ्य सेवाएं और सुरक्षित आवास — ये सब किसी ‘सुविधा’ की नहीं, बल्कि बुनियादी अधिकारों की सूची में आते हैं।
इसलिए इस वर्ष कामगार दिवस पर हमें सिर्फ उत्सव नहीं, एक संकल्प लेना होगा — कि जब तक श्रमिकों की बस्तियों में भी वही स्वच्छता, सुविधा और सम्मान नहीं मिलेगा जो शहर के अन्य भागों में है, तब तक हमारी प्रगति अधूरी है।
कामगारों के पसीने से देश की नींव मजबूत होती है, पर अगर उस नींव को ही नजरअंदाज किया जाए, तो विकास सिर्फ कागज़ पर ही रह जाएगा।