चंद्रपुर विधानसभा क्षेत्र में इन दिनों एक बड़ी कंपनी के विस्तार को लेकर चर्चा तेज़ है। सूत्रों के अनुसार, यह विस्तार तेज़ गति से प्रगति की ओर बढ़ रहा है। बीजेपी सरकार की उद्योग नीति और रोजगार नीति की सराहना करते हुए कहा जा रहा है कि यह विस्तार स्थानीय युवाओं को रोजगार प्रदान करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है। कंपनी द्वारा किसानों से जमीन खरीदने की प्रक्रिया को लेकर कई बातें सामने आ रही हैं।
जानकारी के अनुसार, कंपनी सरकारी दर पर किसानों से जमीन खरीद रही है और बदले में प्रति एकड़ 5 लाख रुपये तक की राशि चेक के रूप में दी जा रही है। साथ ही जमीन देने वाले किसानों को कंपनी में नौकरी भी दी जा रही है, जिसे एक ‘पक्की नौकरी’ के रूप में बताया जा रहा है। यह सुनने में जरूर अच्छा लगता है, परंतु इसके पीछे कई गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।
इतनी बड़ी धनराशि का स्रोत क्या है?
सबसे बड़ा सवाल यह है कि किसानों को दी जा रही इतनी बड़ी राशि का स्रोत क्या है? क्या यह पैसा पूरी तरह से लीगल है, या कहीं काला धन सफेद करने की योजना का हिस्सा तो नहीं? यदि यह धनराशि कानूनी है तो क्या इसकी संपूर्ण प्रक्रिया बैंकिंग चैनल्स जैसे चेक, आर.टी.जी.एस., एनईएफटी आदि के माध्यम से हो रही है?
कागज़ी प्रक्रिया पर भी सवाल
इसके अलावा, जमीन हस्तांतरण के एग्रीमेंट्स और लिखापढ़ी में भी कई गड़बड़ियों की आशंका जताई जा रही है। सूत्रों के मुताबिक, इन दस्तावेजों पर कुछ चुनिंदा ठेकेदारों, नेताओं, अधिकारियों और अन्य लोगों के हस्ताक्षर होने से संदेह और गहराता जा रहा है। क्या यह सब पारदर्शिता के साथ हो रहा है या किसी विशेष वर्ग को लाभ पहुंचाने के लिए नियमों को ताक पर रखा गया है?
क्या जांच एजेंसियां सक्रिय होंगी?
यह मामला अब इस स्तर तक पहुंच गया है कि ईडी (ED), सीआईडी (CID), आयकर विभाग जैसी एजेंसियों को इस पर ध्यान देना चाहिए। टैक्स चोरी, बेनामी लेन-देन, और काले धन के लेन-देन की संभावनाओं को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। यदि इन एजेंसियों ने सही समय पर जांच नहीं की, तो यह मामला बड़े घोटाले का रूप ले सकता है।
कंपनी का विस्तार और रोजगार की संभावनाएं निश्चित रूप से सकारात्मक संकेत हैं, परंतु इसके साथ ही लेन-देन की पारदर्शिता और कानूनी प्रक्रिया का पालन भी उतना ही जरूरी है। चंद्रपुर में जो कुछ हो रहा है, वह आने वाले समय में मिसाल बनेगा या विवाद का विषय, यह इस बात पर निर्भर करता है कि सरकार और जांच एजेंसियां कितना गंभीरता से इस पर ध्यान देती हैं।