दिवाली का पर्व परंपरागत रूप से प्रकाश, उत्सव और खुशियों का प्रतीक माना जाता है। लेकिन इस पावन अवसर पर इन दिनों कुछ ऐसे किस्से चर्चा में हैं, जो समाज और व्यवस्था दोनों के लिए चिंता का विषय बन चुके हैं। कहा जा रहा है कि पिछले एक महीने से विविध क्षेत्रों में घूम रहे कुछ लोगों को अब कुछ लोगों द्वारा 500 रुपये से लेकर 10,000 रुपये तक बांटे जाएंगे।
नुक्कड़-चौराहों से लेकर बाजार और मोहल्लों तक इस चर्चा ने जोर पकड़ लिया है कि आखिर यह रुपए किसके लिए और क्यों बांटे जा रहे हैं? क्या यह कोई प्रचार, निवेश या धार्मिक दान की आड़ है? या फिर यह किसी बड़े अवैध लेनदेन का हिस्सा है?
कौन लोग हैं और क्यों घूम रहे हैं?
सूत्रों के अनुसार, जिन लोगों द्वारा यह रकम बांटने की बात कही जा रही है, वे विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े हो सकते हैं—जैसे शराब की दुकानें, ठेकेदार, निजी कंपनियाँ, सेमी-गवर्नमेंट कंपनियाँ, भंगार व्यवसाय, सरकारी कार्यालय, कोल डिपो, और यहाँ तक कि कुछ अवैध कारोबार से जुड़े लोग। पिछले दिनों इन स्थानों पर असामान्य भीड़ और गतिविधियाँ देखी गई हैं, जिससे संदेह और गहरा हो गया है।
क्या वाकई रुपए बांटे जा सकते हैं?
कानून की दृष्टि से देखा जाए तो इस तरह खुलेआम रुपए बांटना और उसे किसी आयोजन या त्योहार से जोड़ना अवैध है। आयकर विभाग, पुलिस, सीसीटीवी फुटेज, बैंक लेनदेन और खुफिया रिपोर्ट्स के माध्यम से ऐसे लेनदेन की आसानी से पुष्टि की जा सकती है।
प्रशासन की भूमिका
अब सवाल यह है कि पुलिस, आयकर विभाग और खुफिया एजेंसियाँ इस पर कितनी गंभीरता दिखाती हैं।
कड़ी कार्रवाई: यदि इन संस्थाओं ने सक्रियता दिखाई, तो रुपयों के स्रोत, अवैध कमाई, और संबंधित व्यक्तियों के खिलाफ बड़ा खुलासा संभव है।
अनदेखी का खतरा: वहीं, यदि प्रशासन ने आँख मूँद ली, तो यह अवैध लेनदेन कानून-व्यवस्था पर कलंक साबित होगा और अपराधियों को अप्रत्यक्ष “आशीर्वाद” देने जैसा होगा।
मीडिया और पारदर्शिता
प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की भूमिका भी यहाँ अहम है। क्या वे इस संदिग्ध लेनदेन पर स्टिंग ऑपरेशन करेंगे और जनता के सामने सच्चाई लाएंगे, या केवल अफवाह के रूप में इसे बहने देंगे? यही देखने योग्य होगा।
दिवाली प्रकाश और पारदर्शिता का पर्व है। लेकिन अगर इस अवसर पर अंधेरे में अवैध लेनदेन किए जाते हैं, तो यह समाज और राष्ट्र दोनों के लिए घातक है। अब यह प्रशासन और जांच एजेंसियों की जिम्मेदारी है कि वे ऐसे व्यवहार पर अंकुश लगाएँ और नियम-कायदों को सख्ती से लागू करें।
वास्तविकता यही है कि बिना काले धन या अवैध स्रोत के इतने बड़े पैमाने पर नकद वितरण संभव नहीं। इसलिए आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या वाकई रुपयों का वितरण होता है, या यह सिर्फ अफवाह साबित होती है।





