मुंबई — देश एक सच्चे राष्ट्रभक्त को पुनः खो गया है। कोविड – 19 की झड़ी नहीं, बल्कि समय की लहरों में दबे आदर्शों की एक मूरत आज गुज़र गई। स्वतंत्रता सेनानी, गांधीवादी विचारक और समाजसेवी डॉ. जी. जी. पारिख का कल सुबह मुंबई में अपने आवास पर निधन हो गया। वे लगभग 100 वर्ष के थे।
डॉ. पारिख का पूरा नाम गुनवंतराय गणपतलाल पारीख था। उन्होंने अपना जीवन सामाजिक न्याय, ग्रामोद्योग, शिक्षा एवं आदिवासी जनों के सशक्तीकरण के लिए समर्पित किया।
उनका संघर्ष और योगदान निम्नलिखित मुख्य बिंदुओं में संक्षिप्त किया जा सकता है:
उन्होंने अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत छात्र–कार्यकर्ता के रूप में की। 1940 के दशक से ही सौराष्ट्र और मुंबई में स्वतंत्रता आंदोलनों में सक्रिय रहे।
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, 1942 में, उन्हें पहली बार जेल जाना पड़ा।
बाद में, देश में लगी आपातकाल (1975–77) के दौरान भी उनके सक्रिय दृष्टिकोण के कारण उन्हें दूसरी बार जेल जाना पड़ा।
उन्होंने “यूसुफ मेहरअली सेंटर (Yusuf Meherally Centre)” की स्थापना की, जो पनवेल के पास रायगढ़ जिले में ग्राम विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य कार्यों हेतु सक्रिय है।
सामाजिक आंदोलन, गांधीवाद, खादी उत्थान, स्वावलंबन और ग्राम उद्योगों को बढ़ावा देने में उनका योगदान उल्लेखनीय रहा।
उन्होंने कभी चुनावी राजनीति में स्वयं को नहीं झोंका, बल्कि गांधीवादी जीवन–दर्शन को अपनी कर्म पद्धति बनाया।
उनके निधन की खबर से देश, विशेषकर महाराष्ट्र व गुजरात के सक्रिय सामाजिक व राजनैतिक झुकाव रखने वाले वर्गों में शोक की लहर है। बृहद स्तर पर श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं। उनके पार्थिव शरीर को जनता द्वारा अंतिम दर्शन के लिए रखा गया और बाद में जे. जे. अस्पताल को दान कर दिया गया, जैसा कि उनका जीवन दर्शन था––सेवा और त्याग की भूमिका निभाते हुए।
देश आज यह सोच रहा है कि इस युग में ऐसे आदर्श कितने बचे हैं, जो बातें करना नहीं, बल्कि जीना जानते हों। डॉ. जी. जी. पारिख ने यह जीवन दर्शन हमें दिखाया: संघर्ष, सादगी और सेवा। उनके मार्ग पर चलने का संकल्प बनाना ही, उनकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।





