चंद्रपुर ज़िले के घुग्घुस परिसर में नवनिर्माणाधीन रेलवे उड्डाण पुल को किसी राष्ट्रसंत, महापुरुष, क्रांतिकारी, महाराज या भगवान के नाम से जोड़ने की मांग को लेकर हाल ही में भव्य जन आंदोलन और ज्ञापन सौंपने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। यह जनआंदोलन सोशल मीडिया और स्थानीय समाचार माध्यमों में चर्चा का विषय बना हुआ है। लोगों में इस विषय को लेकर विशेष उत्साह देखा जा रहा है, जिसे एक सकारात्मक सामाजिक चेतना के रूप में देखा जा रहा है।
लेकिन इस बीच एक महत्वपूर्ण और गंभीर मुद्दा उपेक्षित रह गया है—इस निर्माणाधीन पुल क्षेत्र में हो रहे लगातार हादसे। सूत्रों के अनुसार, इस क्षेत्र में अब तक कई दुपहिया, चौपहिया व भारी वाहनों की दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। इनमें कई लोग घायल हुए हैं और कुछ की तो जान भी जा चुकी है, क्योंकि ट्रैफिक जाम के कारण उन्हें समय पर चिकित्सा सुविधा नहीं मिल पाई।
चौंकाने वाली बात यह है कि इन हादसों को लेकर अब तक कोई बड़ा आंदोलन या जनजागरण नहीं हुआ है। समाजसेवी, राजनेता, सामाजिक संगठनों, यहां तक कि खुद को आम नागरिकों का प्रतिनिधि कहने वाले लोग भी इस ओर से आंखें मूंदे बैठे हैं। क्या कारण है कि नामकरण के लिए तो लोग सड़क पर उतर रहे हैं, लेकिन जनता की जान की सुरक्षा के मुद्दे पर कोई आवाज़ नहीं उठ रही है? क्या विकास कार्य की आड़ में सुरक्षा जैसे मूलभूत मुद्दों की अनदेखी की जा रही है?
इसी कड़ी में 9 जून 2025, सोमवार को मौजा-घुग्घुस स्थित राजीव रत्न चौक पर एक दिवसीय भव्य भजन-जन धरना आंदोलन का आयोजन किया गया है। आंदोलन का उद्देश्य पुल का नाम एक राष्ट्रसंत के नाम पर रखने की मांग को लेकर है। इस आंदोलन से जुड़ी एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि उसमें आयोजक समिति के किसी पदाधिकारी का नाम नहीं है, जिससे आंदोलन की पारदर्शिता पर सवाल उठने लगे हैं।
धरना स्थल चंद्रपूर-वणी महामार्ग पर बोंगले पेट्रोल पंप के पास स्थित है, जिससे पेट्रोल पंप की सुरक्षा मानकों को लेकर भी चिंता जताई जा रही है। क्या धरना स्थल पर पर्याप्त सुरक्षा इंतज़ाम किए गए हैं? क्या आंदोलनकारियों को इस संवेदनशील क्षेत्र में धरना देने की अनुमति मिली है? और सबसे बड़ा सवाल—क्या इस धरने से निर्माणाधीन पुल क्षेत्र में हो रहे हादसों पर कोई असर पड़ेगा?
यह समय है जब जनता को यह समझने की ज़रूरत है कि केवल नामकरण से विकास पूर्ण नहीं होता। जब तक आम नागरिकों की सुरक्षा, दुर्घटनाओं की रोकथाम, और आपातकालीन सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित नहीं होती, तब तक किसी भी निर्माण कार्य का उद्देश्य अधूरा रहेगा।
आवश्यक है कि सरकार, प्रशासन और सामाजिक संगठनों को केवल नामकरण की राजनीति से ऊपर उठकर ज़मीनी हकीकत पर ध्यान देना चाहिए। वरना नाम चाहे जितना महान हो, अगर उस पुल पर चलने वाले नागरिक सुरक्षित नहीं हैं, तो वह नाम भी अर्थहीन हो जाएगा।