इरई नदी चंद्रपुर शहर की जीवनरेखा है, लेकिन प्रशासन की लापरवाही के चलते यह नदी वर्तमान में मृतप्राय स्थिति में पहुँच गई है। इसी को देखते हुए जिला प्रशासन ने नदी के गहरीकरण का अभियान शुरू किया है, जो निश्चित रूप से सराहनीय कदम है। हालांकि, इससे पहले चलाए गए चार गहरीकरण अभियानों की विफलता को देखते हुए सांसद प्रतिभा धानोरकर ने आशंका जताई है कि यह अभियान भी केवल एक दिखावा बनकर न रह जाए।
इरई नदी चंद्रपुर शहर के साथ 9 किलोमीटर तक समांतर बहती है और आगे 17 किलोमीटर दूर वर्धा नदी से मिलती है। चंद्रपुर थर्मल पावर स्टेशन और वेकोली की खदानों से निकले ओव्हरबर्डन (खनन अवशेष) के कारण नदी की गहराई कम हो गई है और इसमें झाड़ियाँ उग आई हैं। 2015 में इस नदी के गहरीकरण का पहला अभियान शुरू हुआ था। उसके बाद तीन बार और यह अभियान चला, जिसमें करोड़ों रुपये खर्च हुए, लेकिन कोई ठोस परिणाम नहीं निकला।
अब एक बार फिर प्रशासन ने गहरीकरण अभियान शुरू किया है। पालकमंत्री डॉ. अशोक उईके के अनुसार, यह अभियान 45 दिनों तक जनसहभाग से चलाया जाएगा। लेकिन दूसरी ओर, महानगरपालिका प्रशासन ने इस कार्य के लिए मशीनरी हेतु निविदाएं भी मांगी हैं। इससे लोगों के मन में सवाल उठ रहे हैं कि यह अभियान वास्तव में जनसहयोग से हो रहा है या फिर पूरी तरह प्रशासन की ओर से चलाया जा रहा है। सांसद धानोरकर ने कहा कि प्रशासन इस अभियान को केवल प्रचार का साधन न बनाए, बल्कि वास्तव में नदी का गहरीकरण कर इसका पुनर्जीवन करे – यही हर चंद्रपुर निवासी की अपेक्षा है।
वाळू तस्करों पर क्या कार्रवाई होगी?
जहाँ एक ओर जिला प्रशासन गहरीकरण का अभियान धूमधाम से चला रहा है, वहीं दूसरी ओर रेत तस्कर इरई नदी को बेरहमी से खोद रहे हैं। यह आश्चर्यजनक है कि शहर के इतने पास होने के बावजूद अधिकारी इस अवैध गतिविधि से अनजान बने हुए हैं। इससे यह संदेह उत्पन्न होता है कि कहीं अधिकारियों की मौन सहमति से ही रेत तस्करों का मनोबल न बढ़ा हो। इसीलिए सांसद प्रतिभा धानोरकर ने प्रशासन से यह भी मांग की है कि गहरीकरण के कार्य के साथ-साथ रेत तस्करों पर कड़ी कार्रवाई की जाए।