मांग पूरी न होने पर मनसे स्टाइल आंदोलन की चेतावनी
चंद्रपुर: ताडाळी एमआईडीसी स्थित ओमॅट वेस्ट लि., ताडाळी (सिद्धबली) कंपनी में 16 जनवरी 2025 को हुए एक घटना में तीन मजदूर—निखिल वाघाडे, लल्ला वर्मा और सिकंदर यादव—गंभीर रूप से घायल हो गए थे. सभी को चंद्रपुर के कुबेर अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन सिकंदर यादव की हालत गंभीर होने के कारण दो दिन बाद उन्हें नागपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती किया गया. इलाज के दौरान 3 फरवरी 2025 को उनकी मौत हो गई.
कंपनी ने उनके परिवार को मात्र 20,000 रुपये नकद और 7 लाख रुपये का चेक दिया. सिकंदर यादव उत्तर प्रदेश के निवासी थे और उनके पक्ष में बोलने वाला कोई नहीं था, इसलिए कंपनी ने उनके परिवार को कम मुआवजा देकर अन्याय किया है. इस कारण महाराष्ट्र नवनिर्माण कामगार सेना ने असिस्टेंट लेबर कमिश्नर को ज्ञापन देकर सिकंदर यादव के परिवार को 45 लाख रुपये मुआवजा देने की मांग की है. अगर यह मांग पूरी नहीं हुई तो मनसे स्टाइल में आंदोलन किया जाएगा, ऐसा इशारा मनसे कामगार सेना के जिलाध्यक्ष अमन अंधेवार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिया.
इस दौरान मनसे के जिला उपाध्यक्ष राजू कुकडे, वाहतूक सेना जिलाध्यक्ष महेश वासलवार, जनहित कक्ष विभाग जिलाध्यक्ष रमेश काळाबाधे, सुनील गुढे, रोजगार स्व-रोजगार विभाग जिलाध्यक्ष मनोज तांबेकर सहित अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे.
पहले भी हो चुके हैं ऐसे हादसे
ओमॅट वेस्ट लि., ताडाळी में 16 जनवरी 2025 को हुए हादसे में घायल मजदूरों को बेहतर इलाज दिलाने के लिए मनसे ने कंपनी और अस्पताल प्रशासन पर दबाव बनाया था. इससे पहले 2024 में इसी कंपनी में श्यामसुंदर नत्थुजी ठेंगणे और अजय कुमार राम नामक दो मजदूरों की भी दुर्घटना में मौत हुई थी. उस वक्त मनसे कामगार सेना की कोशिशों से श्यामसुंदर के परिवार को 45 लाख रुपये का मुआवजा मिला था, लेकिन अजय कुमार राम बाहरी राज्य से होने के कारण कंपनी ने चुपचाप उनके परिवार को पैसे देकर शव उनके गृह राज्य भेज दिया था.
मजदूर मुआवजा कानून के तहत सिकंदर यादव के परिवार को 30 लाख से अधिक मिलना चाहिए.
अगर किसी मजदूर की नौकरी के दौरान हादसे में मौत होती है, तो मजदूर मुआवजा कानून, 1923 के तहत उसके परिवार को मुआवजा दिया जाता है. उदाहरण के लिए, अगर किसी 35 वर्षीय मजदूर की सैलरी ₹12,000 है, तो मुआवजा गणना के अनुसार:
मृत्यु मुआवजा = 50% × वेतन × 197.06
= ₹11,82,360 (लगभग 12 लाख रुपये)
सिकंदर यादव की उम्र 30 साल थी और वेतन ₹30,000 था, तो इस फॉर्मूले के अनुसार उन्हें कम से कम 30 लाख रुपये से ज्यादा मुआवजा मिलना चाहिए. लेकिन कंपनी ने सिर्फ 7 लाख रुपये दिए, जो सरासर अन्याय है.
एक कंपनी, दो मजदूरों के लिए अलग-अलग नियम क्यों?
श्यामसुंदर नत्थुजी ठेंगणे के परिवार को 45 लाख रुपये मिले, तो सिकंदर यादव की पत्नी को भी उतनी ही राशि मिलनी चाहिए. एक ही कंपनी में एक मजदूर को ज्यादा और दूसरे को कम मुआवजा देना नाइंसाफी है. अगर कंपनी जल्द से जल्द 45 लाख रुपये का मुआवजा नहीं देती, तो महाराष्ट्र नवनिर्माण कामगार सेना उग्र आंदोलन करेगी. इससे कानून-व्यवस्था बिगड़ने की जिम्मेदारी कंपनी प्रशासन की होगी, ऐसा कड़ा संदेश मनसे कामगार सेना जिलाध्यक्ष अमन अंधेवार ने असिस्टेंट लेबर कमिश्नर और इंडस्ट्रियल सेफ्टी एंड हेल्थ डिप्टी डायरेक्टर को सौंपे गए ज्ञापन में दिया है.