(प्रणयकुमार बंडी)
शनिवार को शासकीय विश्रामगृह में विधायक द्वारा घुग्घुस नगर परिषद के विकास कार्यों की समीक्षा बैठक आयोजित की गई। बैठक में शहर की जलापूर्ति, सड़क मरम्मत, बिजली व्यवस्था और नागरिकों को दी जाने वाली मूलभूत सुविधाओं में सुधार के लिए दिशा-निर्देश दिए गए। बंद पड़े स्ट्रीट लाइट्स को तुरंत शुरू करने और पानी की सप्लाई को स्वच्छ व सुचारु रखने के आदेश भी जारी किए गए।
बैठक में नगर परिषद के नए विकास आराखड़े को गति देने और हाल ही में भूस्खलन से प्रभावित 165 घरों के पुनर्वास का मुद्दा भी उठा। निधियों के संतुलित उपयोग और सर्वसमावेशी विकास की बातें खूब हुईं। लेकिन सवाल ये है — क्या इन बैठकों का कोई वास्तविक असर जमीन पर दिखाई दे रहा है?
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि यह बैठकें सिर्फ औपचारिकता बनकर रह गई हैं। सड़कों की हालत जस की तस, रात में जलती नहीं लाइटें, और गंदे पानी की सप्लाई आज भी लोगों की सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है। जिन समस्याओं पर हर बार “तात्कालिक कार्रवाई” का आश्वासन दिया जाता है, वे हर बार अगली बैठक तक ही सीमित रह जाती हैं।
लोगों का आरोप है कि नगर परिषद और जनप्रतिनिधि सिर्फ “मीटिंगों में फोटो खिंचवाने” और “कागज़ों पर काम दिखाने” में व्यस्त हैं। शहर के विकास के नाम पर जो योजनाएं बनाई जा रही हैं, उनका कोई ठोस परिणाम नजर नहीं आ रहा।
नागरिकों की तीखी प्रतिक्रिया है —
“घुग्घुस में विकास सिर्फ भाषणों और कागजों तक सीमित है। जमीनी स्तर पर न सड़क सुधरी, न पानी आया, न रोशनी लौटी। जनता अब सिर्फ वादों से नहीं, काम से जवाब चाहती है।”
ऐसा प्रतीत होता है कि जब तक इन बैठकों के निर्णयों का ईमानदारी से पालन नहीं किया जाएगा, तब तक घुग्घुस का विकास सिर्फ सरकारी फाइलों में ही कैद रहेगा।




