घर-आंगन से निकल कर वैश्विक मंच तक की उड़ान
भारत के गांवों में बदलाव की एक सशक्त धारा बह रही है — और इस परिवर्तन की अगुआई कर रही हैं महिलाएं। वे महिलाएं, जो कभी घरेलू ज़िम्मेदारियों तक सीमित थीं, आज गांव की सत्ता की धुरी बन चुकी हैं। और अब यही महिलाएं, अपने संघर्षों और सफलताओं के साथ, संयुक्त राष्ट्र (UN) जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व कर रही हैं।
सिर्फ पद नहीं, पहचान बनीं महिला सरपंचें
पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं को 33% आरक्षण मिलने के बाद लाखों महिलाएं सरपंच बनीं। शुरुआत में यह निर्णय केवल ‘प्रॉक्सी’ सरपंच तक सीमित समझा गया — जहां महिलाएं सिर्फ नाम की सरपंच थीं, और फैसले पति या घर के पुरुष लेते थे। लेकिन समय के साथ यह तस्वीर बदली।
अब सरपंची संभालने वाली महिलाएं न केवल फैसले ले रही हैं, बल्कि स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता, जल प्रबंधन, महिला सुरक्षा जैसे विषयों पर नई पहल भी कर रही हैं। वे गांव की समस्याओं को जड़ से पहचानकर समाधान लागू कर रही हैं।
विरोध, उपहास और व्यवस्था से संघर्ष
इन महिला सरपंचों का रास्ता आसान नहीं रहा। परिवार में उन्हें घर से बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी। समाज ने उन्हें कमजोर समझकर हतोत्साहित किया। सिस्टम ने उन्हें गंभीरता से नहीं लिया। फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। कई महिला सरपंचों ने पुरुष प्रधान मानसिकता को चुनौती दी, न सिर्फ अपने अधिकारों के लिए, बल्कि पूरे गांव की भलाई के लिए।
संयुक्त राष्ट्र में भारत की आवाज
आज यही महिलाएं, जो कभी चौपाल में बोलने से डरती थीं, अब संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक मंचों पर भारत की विकास यात्रा की गवाह बनकर बोल रही हैं। वे जल जीवन मिशन, डिजिटल पंचायत, महिला सशक्तिकरण, ग्रामीण रोजगार और शिक्षा के क्षेत्र में किए गए अपने कार्यों को साझा कर रही हैं।
यह भारत के लिए एक गर्व का क्षण है — जब एक सरपंच बहन, गांव से निकलकर दुनिया को भारत की नई पहचान बता रही है।
प्रेरणा बनती मिसालें कुछ उदाहरण:
छत्तीसगढ़ की सरपंच माया देवी, जिन्होंने अपने गांव में बालिकाओं के लिए पहली बार उच्च माध्यमिक विद्यालय शुरू करवाया।
राजस्थान की सरपंच नाजमा बीबी, जिन्होंने स्वच्छता अभियान के तहत पूरे गांव को खुले में शौच से मुक्त किया।
उत्तर प्रदेश की गीता देवी, जो अब UN में ग्रामीण नेतृत्व और महिला सशक्तिकरण पर भाषण देती हैं।
नया भारत, नई दिशा
इन महिला सरपंचों की कहानियाँ यह साबित करती हैं कि अगर अवसर और समर्थन मिले, तो ग्रामीण भारत की महिलाएं भी विश्व पटल पर देश की पहचान बन सकती हैं। वे सिर्फ नेता नहीं हैं, वे परिवर्तन की प्रतीक हैं।
“जहां तक सोच सकती हैं महिलाएं, वहां तक पहुंच भी सकती हैं। और आज वे सोच नहीं रहीं, बल्कि आगे बढ़कर रास्ता बना रही हैं।”