चंद्रपुर जिले के घुग्घुस शहर और शेनगांव-उसगांव क्षेत्र में विस्तार कर रही एक बड़ी आयरन एंड पावर कंपनी इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है। बीते कई महीनों से कंपनी में रोजगार अभियान चल रहा है, जिससे स्थानीय लोगों में उम्मीद और उत्साह की लहर दौड़ गई है। कंपनी में टेक्निकल और नॉन-टेक्निकल पदों पर भर्तियाँ हो रही हैं, जिससे कई बेरोजगारों को रोजगार मिला है। हालांकि इस खुशखबरी के बीच कुछ गंभीर सवाल भी खड़े हो रहे हैं।
नेताओं की सिफारिश बन रही बाधा
स्थानीय सूत्रों के अनुसार, कंपनी में रोजगार पाने के लिए राजनीतिक सिफारिश या प्रभावशाली व्यक्ति की सिफारिश आवश्यक होती जा रही है। कई योग्य उम्मीदवार केवल इसलिए नौकरी से वंचित रह जा रहे हैं क्योंकि उनके पास कोई “रेफरेंस” नहीं है। इससे स्थानीय युवाओं में निराशा देखी जा रही है और यह सवाल उठ रहा है कि क्या योग्यता से अधिक प्रभाव को प्राथमिकता दी जा रही है?
किसानों की जमीन अधिग्रहण और नौकरी का वादा
कंपनी ने शेनगांव और उसगांव क्षेत्र के कई किसानों की ज़मीन अधिग्रहित की है। जानकारी के अनुसार कुछ किसानों को उचित मुआवजा मिला है और उनके परिजनों को नौकरी भी दी गई है। हालांकि कुछ किसानों का मुआवजा और नौकरी अभी भी लंबित है। कुछ मामलों में किसानों ने अपने रिश्तेदारों या परिचितों को नौकरी की सीटें दे दी हैं, जिससे पारदर्शिता पर प्रश्नचिह्न लग रहा है।
जूनियर HR से इंटरव्यू, अनुभवहीनता पर सवाल
स्थानीय नागरिकों और सूत्रों का आरोप है कि कंपनी में उम्मीदवारों के इंटरव्यू अनुभवी HR प्रबंधकों की जगह जूनियर HR कर्मियों द्वारा लिए जा रहे हैं। इससे योग्य उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया संदिग्ध बन गई है। विशेषज्ञ मानते हैं कि इंटरव्यू एक निर्णायक प्रक्रिया होती है जिसे अनुभवी व्यक्ति द्वारा ही लिया जाना चाहिए ताकि पात्रता और कंपनी की शर्तों के आधार पर सही निर्णय लिया जा सके।
बाहरी जिलों और राज्यों से उमड़ रही भीड़
इस रोजगार अभियान के तहत चंद्रपुर जिले के अलावा नागपुर, यवतमाल, वर्धा, गडचिरोली और अन्य जिलों व राज्यों के हजारों लोग नौकरी की तलाश में आ रहे हैं। इससे स्थानीय युवाओं को उचित अवसर नहीं मिल पा रहा है और प्रतिस्पर्धा अत्यधिक बढ़ गई है।
नेताओं और बिचौलियों की संदिग्ध भूमिका
कंपनी द्वारा अधिग्रहित की गई जमीनों के सौदे में नेताओं और बिचौलियों की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। कहा जा रहा है कि किसानों को सरकारी दर से अधिक कीमत दी गई है, जिससे वे खुश हैं। लेकिन यह भी प्रश्न उठ रहा है कि कंपनी के पास इतनी बड़ी धनराशि कहां से आई? क्या यह धन वैध है या इसके पीछे कोई बड़ा खेल छिपा है?
जांच एजेंसियों की भूमिका आवश्यक
इस पूरे मामले में आर्थिक अनियमितताओं की आशंका को देखते हुए CBI, ED और आयकर विभाग जैसी केंद्रीय एजेंसियों को ध्यान देना चाहिए। अगर कंपनी के फंडिंग में कोई गड़बड़ी है, तो इसका जल्द से जल्द खुलासा आवश्यक है ताकि आम जनता और किसानों के हित सुरक्षित रह सकें।
जहाँ एक ओर यह रोजगार मुहिम स्थानीय लोगों के लिए उम्मीद की किरण है, वहीं दूसरी ओर पारदर्शिता, निष्पक्षता और कानून के दायरे में कार्यवाही की मांग को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सरकार और संबंधित एजेंसियों को समय रहते इस पर ध्यान देना चाहिए ताकि विकास की आड़ में कोई शोषण न हो सके।