राजस्थान की रेत में लिपटा एक शहर, जहां इतिहास की गूंज आज भी किलों की दीवारों से टकरा कर सुनाई देती है — यह है जोधपुर, जिसे “ब्लू सिटी” और “सन सिटी” के नाम से भी जाना जाता है। आज ही के दिन, 12 मई 1459, को इस ऐतिहासिक शहर की नींव रखी गई थी। यह वह क्षण था जब राव जोधा ने एक ऐसे शहर की शुरुआत की, जो आने वाले सदियों में राजस्थानी संस्कृति, वास्तुकला और वीरता का प्रतीक बन गया।
स्थापना की कहानी
जोधपुर की स्थापना राठौड़ वंश के संस्थापक राव जोधा ने की थी। मंडोर से राजधानी स्थानांतरित करते हुए, राव जोधा ने मेहरानगढ़ की पहाड़ी पर एक दुर्ग की नींव डाली। यही दुर्ग आगे चलकर मेहरानगढ़ किला बना — राजस्थान के सबसे विशाल और भव्य किलों में से एक। कहा जाता है कि इस स्थान पर एक संत “चिरिया नाथ” रहा करते थे, जिन्हें हटाने के लिए राव जोधा को उनका श्राप झेलना पड़ा। उस श्राप से बचने के लिए एक व्यक्ति को जीवित समाधि दी गई, और तभी जाकर किले का निर्माण कार्य सुचारु रूप से शुरू हो सका।
“ब्लू सिटी” की पहचान
जोधपुर को “ब्लू सिटी” कहे जाने के पीछे भी एक ऐतिहासिक कारण है। पुराने शहर में स्थित घरों को नीले रंग से रंगा गया था, जो कि ब्राह्मणों का प्रतिनिधित्व करता था। बाद में यह परंपरा इतनी लोकप्रिय हो गई कि अन्य जातियों के लोग भी अपने घर नीले रंगने लगे। यह रंग न केवल सांस्कृतिक प्रतीक बना, बल्कि गर्मी में ठंडक भी प्रदान करता है।
स्थापत्य और विरासत
मेहरानगढ़ किला, उम्मैद भवन पैलेस, जसवंत थड़ा, क्लॉक टावर, मंडोर गार्डन — ये सभी स्थल जोधपुर की ऐतिहासिक विरासत को जीवित रखते हैं। उम्मैद भवन पैलेस तो आज भी दुनिया के सबसे बड़े निजी निवासों में से एक है और इसका एक हिस्सा होटल तथा म्यूज़ियम के रूप में विकसित किया गया है।
आधुनिक जोधपुर
आज जोधपुर राजस्थान का दूसरा सबसे बड़ा शहर है और एक प्रमुख पर्यटन केंद्र भी। यहां की पारंपरिक पोशाकें, संगीत, मारवाड़ी व्यंजन, और हस्तशिल्प दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं। जोधपुर इंटरनेशनल फेस्टिवल, मरुधर महोत्सव, और यहां की ऊँट सवारी पर्यटकों के बीच विशेष आकर्षण रखते हैं।
1459 में अस्तित्व में आया यह शहर सिर्फ इतिहास नहीं, बल्कि जीवनशैली है। जोधपुर आज भी अपनी नीली गलियों, विशाल किलों, और संस्कृति की खुशबू के साथ समय से आगे चलता प्रतीत होता है। राव जोधा की यह नींव आज राजस्थान ही नहीं, भारत की भी पहचान है।