Sunday, July 13, 2025

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औद्योगिक नगरी में जनहितैषियों का जनम: सेवा या स्वार्थ?


जब RTI और शिकायतें बन जाती हैं सोशल मीडिया की सीढ़ियाँ

यह कहानी है एक ऐसी औद्योगिक नगरी की, जहाँ कभी विकास की गूंज थी, अब वहां जनहित के नाम पर शोरगुल मचा है। प्रदूषण, अपराध और भ्रष्टाचार के बीच अब एक नया चेहरा सामने आया है — “जनहितैषी”। लेकिन क्या यह नया चेहरा वाकई जनता का हमदर्द है, या फिर एक और मुखौटा है, जिसके पीछे छिपा है निजी लाभ और पहचान का खेल?

RTI से लेकर रीलील्स तक: एक तयशुदा स्क्रिप्ट

इन तथाकथित जनहितैषियों का फार्मूला लगभग एक जैसा दिखता है:

कोई मुद्दा पकड़ा – सड़क टूटी हो, बिजली गई हो, या फिर कोई अधिकारी काम नहीं कर रहा हो।

निवेदन और RTI – तुरंत आवेदन, और फिर जवाब न आने पर RTI का सहारा।

मीडिया कवरेज – जान-पहचान वाले पत्रकारों के माध्यम से “एक्शन में जनहितैषी” वाली हेडलाइनें।

अधिकारियों और नेताओं से मुलाकात – समस्याओं पर गंभीर चर्चा नहीं, बल्कि फोटो सेशन।

सोशल मीडिया का तूफान – “मेरे प्रयास से हुआ संभव”, “जनता की आवाज़ बना” जैसे कैप्शन के साथ रील्स और पोस्ट्स।

जनहित या स्वयंहित?

जब हम इनके काम करने के तरीके को गहराई से देखते हैं, तो कुछ बातें उभर कर सामने आती हैं:

इनका केंद्र मुद्दा नहीं, बल्कि अपने चेहरे की पहचान होता है।

इनका लक्ष्य समाधान नहीं, बल्कि सुर्खियाँ बटोरना होता है।

जैसे ही कैमरे बंद हुए, जनहित की आवाज़ भी मंद पड़ जाती है।

एक को देखकर अब कई और “सोशल मीडिया एक्टिविस्ट” बनकर उभर आए हैं, जिनका उद्देश्य “फॉलोअर्स” बढ़ाना है, न कि असल बदलाव लाना।

मीडिया की भूमिका: जाँच या झांसा?

स्थानीय मीडिया, जो कभी जनभावनाओं की सच्ची आवाज़ थी, अब कहीं-कहीं खुद इस “शो” का हिस्सा बन चुकी है।

क्या वह वाकई इन मुद्दों की पड़ताल करती है?

क्या वो यह देखती है कि यह जनहितैषी जमीनी काम कर भी रहे हैं या नहीं?

या फिर सनसनी और TRP की दौड़ में सिर्फ चेहरों को उछाल रही है?

जनता को समझना होगा—हीरो कौन है, और अभिनेता कौन!

अब समय है, जब जनता को समझना होगा कि—

असली सेवक वह नहीं जो कैमरे के सामने चिल्लाता है,

बल्कि वह है जो बिना दिखावे के समाधान की ओर काम करता है।

औद्योगिक नगरी को ऐसे लोगों की नहीं, ऐसे कर्मवीरों की ज़रूरत है, जो वाकई जनहित में सोचें, और काम करें — न कि सिर्फ अपना चेहरा चमकाएं।

जागरूक बनिए, प्रचार के शिकार नहीं

जनसेवा का मार्ग प्रचार से नहीं, परिश्रम से बनता है। इसलिए अगली बार जब कोई “जनहितैषी” RTI लेकर आए या सोशल मीडिया पर वीडियो डाले, तो यह जरूर सोचिए — यह वाकई आपके लिए कर रहा है, या अपने लिए?

क्योंकि,
“असली जनहितैषी वो नहीं जो खुद की जय-जयकार करे,
बल्कि वो है जो बिना नाम के भी जनता की सेवा करे!”
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Pranaykumar Bandi

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