पूर्णिया, बिहार — कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने पूर्णिया में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि “बेरोजगारी और पलायन बिहार का सबसे बड़ा दर्द है।” उन्होंने राज्य सरकार पर आरोप लगाया कि “यहां के युवाओं को काम नहीं मिलता, उद्योग नहीं हैं, पद खाली हैं लेकिन भरे नहीं जा रहे।”
प्रियंका गांधी के बयान ने एक बार फिर राजनीतिक बहस को हवा दे दी है। मगर सवाल यह है कि क्या कांग्रेस नेता को बिहार की सामाजिक–आर्थिक जमीनी सच्चाई का वास्तव में अंदाज़ा है, या यह केवल चुनावी मंच की एक और भाषणबाज़ी थी?
बिहार की जनता जानती है कि बेरोजगारी कोई नई समस्या नहीं है — यह दशकों से चली आ रही है। मगर उसी अवधि में कांग्रेस की भी सरकारें रहीं, और केंद्र में भी कांग्रेस लंबे समय तक सत्ता में रही। तब सवाल उठता है कि उन वर्षों में बिहार के लिए क्या किया गया? उद्योग लगाने की दिशा में कोई ठोस पहल क्यों नहीं हुई?
आज प्रियंका गांधी जब मंच से “बेरोजगारी और पलायन” का मुद्दा उठाती हैं, तो यह जनता के जख्मों पर मरहम कम, बल्कि पुराने जख्मों की याद अधिक दिलाता है। कांग्रेस ने बिहार की औद्योगिक धारा को पुनर्जीवित करने के लिए कोई स्थायी रोडमैप पेश नहीं किया, न ही युवाओं के कौशल विकास के ठोस उपाय बताए। सिर्फ़ “सरकार पर निशाना साधना” अब जनता को खोखला लगता है।
राज्य की सरकार की नीतियों पर आलोचना ज़रूर हो सकती है — और होनी भी चाहिए — लेकिन जब यह आलोचना उन नेताओं के मुंह से आती है जिनकी पार्टी ने दशकों तक बिहार और देश दोनों को संभाला, तो जनता का भरोसा स्वाभाविक रूप से डगमगा जाता है।
बिहार के युवा अब सिर्फ़ भाषण नहीं, ठोस नीति और जवाबदेही चाहते हैं। और शायद यही वह कसौटी है जिस पर प्रियंका गांधी का “पूर्णिया भाषण” जनता के बीच भरोसे की जगह सियासी प्रदर्शन जैसा महसूस हुआ।




