भारत माता के वीर सपूतों में लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे का नाम सदा स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा। कारगिल युद्ध के दौरान अपनी जान की परवाह किए बिना दुश्मनों से लोहा लेते हुए वे 03 जुलाई 1999 को शहीद हो गए। महज़ 24 वर्ष की आयु में उन्होंने जो साहस, नेतृत्व और राष्ट्रप्रेम दिखाया, वह हर भारतीय के लिए प्रेरणा है।
प्रारंभिक जीवन
मनोज कुमार पांडे का जन्म 25 जून 1975 को उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में हुआ था। वे बचपन से ही निडर, मेधावी और देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत थे। उनका सपना था—भारतीय सेना में शामिल होकर देश की सेवा करना। यही कारण है कि उन्होंने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) और फिर भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) में प्रवेश लिया।
वीरता का परिचय
लेफ्टिनेंट पांडे गोरखा राइफल्स की 1/11 बटालियन में तैनात थे। कारगिल युद्ध के दौरान उन्हें दुश्मनों द्वारा कब्जा की गई खालूबार पोस्ट को फिर से भारत के नियंत्रण में लेने की जिम्मेदारी दी गई। उन्होंने दुर्गम पहाड़ियों पर चढ़ाई करते हुए दुश्मन की गोलियों और ग्रेनेड का सामना किया। कई मोर्चों पर घायल होने के बावजूद उन्होंने दुश्मनों की कई बंकरों को ध्वस्त किया।
उन्होंने आखिरी सांस तक लड़ते हुए दुश्मन के चार ठिकानों को तबाह किया और अंततः भारत को जीत दिलाई। इसी अदम्य साहस और बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया – यह भारत का सर्वोच्च सैन्य सम्मान है।
प्रेरणास्रोत शब्द
लेफ्टिनेंट मनोज पांडे ने एनडीए में दाखिले के समय एक फॉर्म में लिखा था:
“If death strikes before I prove my blood, I promise, I will kill death.”
(यदि मृत्यु मेरे साहस को साबित करने से पहले आए, तो मैं वादा करता हूँ – मैं मृत्यु को मार डालूँगा।)
यह वाक्य उनके जीवन और शहादत की सच्ची तस्वीर है।
स्मृति और सम्मान
आज भी भारतवासी उन्हें गर्व और सम्मान से याद करते हैं। उनके नाम पर कई स्कूल, चौक और सैन्य इमारतें स्थापित की गई हैं। हर साल 03 जुलाई को उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है।
लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे सिर्फ एक सैनिक नहीं, बल्कि भारत के युवाओं के लिए आदर्श हैं। उनका जीवन हमें सिखाता है कि राष्ट्रसेवा सर्वोच्च है और इसके लिए जीवन का बलिदान भी गौरव की बात है। इतिहास के पन्नों में उनका नाम सदैव अमर रहेगा।




